उत्तराखण्ड के पौड़ी से ८० किलोमीटर और कोटद्वार से 38 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम में चीड़, देवदार और बांज के दरख्तों के बीच स्थित रमणीक स्थल , काळौडाण्डा किसी के परिचय का मुहताज नहीं ।
मेरा शुरुआती बचपन और प्रारम्भिक शिक्षा इसी काळौडाण्डा के रेजीमेंटल सेंटर के घरबारी लाइन के ऊपर स्थित केंद्रीय विद्यालय से हुई थी , इसलिए इसका स्मरण मेरे लिए उतनी ही सुखद अनुभूति प्रदान करता है जितना मेरा अपना टेहरी गढ़वाल स्थित गाँव।
काळौडाण्डा के खाते में अनेक बड़ी उपलब्धिया मौजूद है, मसलन यह गढ़वाल राइफल्स के रणबांकुरों का रेजिमेंटल सेंटर है।
यह एक बहुत ही रमणीक और खुशनुमा मौसम वाला पर्वतीय पर्यटक स्थल है, जहां टिप्पन टॉप से हिमालय को निहारना आँखों को बड़ा सुख देता है।
यहाँ की चॉकलेट इतनी स्वादिष्ट है कि आजादी के कई सालों बाद तक भी अंग्रेज सैनिक और उनके रिश्तेदार ब्रिटेन से पार्सल से इसे ऑर्डर कर मंगाते थे ।
मेरा शुरुआती बचपन और प्रारम्भिक शिक्षा इसी काळौडाण्डा के रेजीमेंटल सेंटर के घरबारी लाइन के ऊपर स्थित केंद्रीय विद्यालय से हुई थी , इसलिए इसका स्मरण मेरे लिए उतनी ही सुखद अनुभूति प्रदान करता है जितना मेरा अपना टेहरी गढ़वाल स्थित गाँव।
काळौडाण्डा के खाते में अनेक बड़ी उपलब्धिया मौजूद है, मसलन यह गढ़वाल राइफल्स के रणबांकुरों का रेजिमेंटल सेंटर है।
यह एक बहुत ही रमणीक और खुशनुमा मौसम वाला पर्वतीय पर्यटक स्थल है, जहां टिप्पन टॉप से हिमालय को निहारना आँखों को बड़ा सुख देता है।
यहाँ की चॉकलेट इतनी स्वादिष्ट है कि आजादी के कई सालों बाद तक भी अंग्रेज सैनिक और उनके रिश्तेदार ब्रिटेन से पार्सल से इसे ऑर्डर कर मंगाते थे ।
जैसा कि मैंने कहा , यह एक बहुत सुन्दर रमणीक स्थान है। यूं तो निहारने के लिए सभी कुछ है। जहां टिप्पन टॉप से हिमालय की मनोहारी छटा नजर आती है वहीँ कैंटोनमेंट के अंदर से आप कालागढ़ डाम और नजीबाबाद का दूर का एक नजारा भी देख सकते है। हाँ, शायद सिविलियन को कंटोंमेंट का नजारा उपलब्ध न हो पाये। अन्य स्थलों में ; वार मेमोरियल, गढ़वाली मेस, दरवान सिंह संग्रालय, परेड ग्राउंड , ताड़केश्वर मंदिर, भुला ताल इत्यादि का लुफ्त उठाना एक अलग सुख की अनुभूति होगी।
मैंने भुलाताल का जिक्र किया। इसकी भी अपनी एक मार्मिक कहानी है। १६-१७ साल का एक पहाड़ी बच्चा जब किसी जज्बे और सम्मान के लिए यहाँ आता है और एक रंगरूट के तौर पर सेना में भर्ती होता है तो उसकी प्रारम्भिक स्थिति भी कुछ इस मेमने के समान होती है;
जिसे आगे चलकर इस बेरहम दुनिया के साथ मिलकर कदमताल करना है। और जिसका मकसद होता है " एक गोली- एक दुश्मन ! "
हाँ, टॉपिक से न भटकते हुए भुलाताल पर आता हूँ।
सैलानियों के लिए बनाये गए इस ताल का नाम भुलाताल इसलिए पड़ा कि गढ़वाल-कुमाऊं और देश के कोने-कोने से भर्ती होकर यहां आने वाले हर भुला(रंगरूट) ( भुला, गढ़वाली, कुमाऊनी में छोटे भाई को कहा जाता है ) ने इसे बनाने और मेंटेन रखने में अपना खून पसीना बहाया है। इसीलिए इसका नाम भुलाताल पड़ा।
इस काळौडाण्डा में मनोरंजन के लिए एक मात्र सिनेमाहॉल भी है। ( नीचे लगे चित्र में बीच में ) जिसमे बचपन में चोरी-चोरी मैंने भी काफी फिल्मे देखी। :-) यहां जब एक पिक्चर लगती थी तो महीनो तक नहीं उतरती थी। इसमें इन अपने भुलाओ के मनोरंजन का भी ख्याल रखा जाता है. अगर आपको मैं उन भुलाओं और पिक्चर हॉल को न दिखाऊँ तो ज्यादती होगी।
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